Noor Inayat Khan इंग्लैंड कि वो जासूस, जो Tipu Sultan के खानदान से थी.

Noor Inayat Khan वो जासूस जो भारतीय वंशज से थी.
जासूसी की दुनिया में यहाँ आपको अपना नाम बदलना पड़ता है, आपको passpor बदलना पड़ता है, अपनी पहचान बदलनी पड़ती है, आपको काम नहीं बताना पड़ता है,
मगर ये वो जासूस थी जो कहती थी मैं झूठ नहीं बोलूंगी,
अब कोई जासूस हो, और वो कहे कि झूठ नहीं बोलेंगे, तो सामने वाला उसकी team उसका boss क्या सोचेगा यार ये तो खुद भी मरेगी, और सामने वाले को भी मरवाएगी,
लेकिन उसके बावजूद इस जासूस ने जासूसी की दुनिया में वो करामात किया जिसकी वजह से आप कहते हैं कि United Kingdom यानी Britain की currency पर इनकी तस्वीर आने वाली है,
कांच की प्रतिमा तो पहेले से ही London में लग गयी है इनकी और ये Asia की पहली और हिंदुस्तानी मुल्क की पहली महिला है, जिनको ये सारे इनाम और सारे सम्मान मिल रहे है,
हम बात कर रहा है Noor Inayat Khan की
एक ऐसी जासूस जो जब पकड़ी गयी तब भी हार नहीं मानी, जुबान नहीं खोला, और वो शायद पकड़ी भी ना जाती अगर अपने ही लोग गद्दारी ना करते तो,
कहते है कि इनके पकड़े जाने इनकी गिरफ्तारी के पीछे एक महिला का हाथ था, और वो महिला Noor Inayat Khan से जलती थी, उसकी खूबसूरती से जलती थी, उसकी काबिलियत से जलती थी,
और इसीलिए उसने दुश्मन को खबर कर दी उसके बारे में,और फिर दुश्मन देश ने उसे गिरफ्तार कर लिया, और आखिर में Noor Inayat Khan को गोली मार दी,
Noor Inayat Khan वो बहादुर जासूस जिसके बारे में कहते हैं, कि हिटलर भी डरा करता था, क्योंकि हिटलर की जासूसी के लिए बाकायदा नूर इनायत खान को लगाया था,
और Noor Inayat Khan की पहचान ये है, कि ये मशहूर टीपू सुल्तान की वंशज है, टीपू सुल्तान के खानदान से आती है, और उसके बाद ब्रिटेन के लिए जासूसी की, और ब्रिटेन ने इनको तमाम वो पुरस्कार है, जो सम्मान है वो दिए,
1940 में Moscow में पैदाइश हुई नूर के जो वालिद थे वो टीपू सुल्तान के परपोते थे उन्होंने एक अमेरिकन महिला से शादी की,
रूस में उसके बाद परवरिश हुई, बाद में ये लोग फ्रांस चले गए, और फिर फ्रांस के बाद जब सेकंड वर्ल्ड वॉर और ये सारी चीजें चल रही थी, तब ये ब्रिटेन पहुँच गए,
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान इनका परिवार Paris में रहा था, फिर वहीं से Noor Inayat Khan की कहानी असल में शुरू होती है,
1939 में Noor की एक किताब भी छपी थी London में और 1940 में जब France में Germany की हुकूमत आ गयी France में जब German ने कब्ज़ा कर लिया,
तो उस वक्त फिर Noor और उनका परिवार जो Paris में रह रहा था वो वहाँ से उठकर Britain चला गया, और Britain ने इन्हें बाकायदा पनाह भी दी,
और इसी पनाह का कर्ज चुकाने के लिए Noor ने कहा था कि वो Britain की मदद करेंगे, और Noor Inayat Khan जासूसी की दुनिया की कहानी वहीं से शुरू होती है,
फिर 1943 में नूर एक स्पेशल ऑपरेशन एग्जीक्यूटिव बनी, हालांकि उनको फ्रेंड सेक्शन के लिए तैनात कियागया था वहाँ पे एक नर्स के तौर पर,
लेकिन Noor Inayat Khan रेडियो ऑपरेटर बहुत बेहतरीन थी, इसलिए दुश्मनों की बातचीत और मैसेज देना ये सारी चीजें उनको इस कला में माहिर थी, और ट्रेनिंग ले रही थी,
लेकिन उसकी ट्रेनिंग के दौरान ही ऐसा हुआ कि, जो बहुत सारे ब्रिटेन के जासूस थे वो एक एक करके पकड़े जा रहे थे, और जासूस की तादाद कम होती जा रही थी,
इधर नूर की ट्रेनिंग चल रही थी, स्पेशल ऑपरेशन एग्जीक्यूटिव के तौर पर, रेडियो ऑपरेटर के तौर पर ताकि दुश्मनों की बाकी दुश्मनों की खबरें ये सब पकड़ सके, लेकिन ट्रेनिंग खत्म होने से पहले ही जासूसों का अकाल पड़ गया,
तो अब उस वक्त ब्रिटेन को तलाश थी उन जासूसों की जो उनकी मदद कर सके, और फिर उनकी नजर पड़ती है Noor Inayat Khan पर,
नूर की ट्रेनिंग आधी थी, इसके बावजूद ब्रिटेन ने उनको अपने साथ मिलाया, एक जासूस के तौर पर, और फिर उन्हें Paris जाने को कहा गया,
ताकि वहाँ पे जर्मन, और नाजियों की सारी गतिविधियों, और उन सारी चीजों की जानकारी दे सकें,
जब नूर Paris पहुँची उसके बाद, नूर ने एक वायरलेस ऑपरेटर के तौर पर उन्होंने अपना काम किया,
और जितनी भी गुप्त खबरें थी, वो और जो वहाँ के उनके अपने लोग थे, जासूस की पूरी एक टीम थी, जो धीरे धीरे बनाई जा रही थी, वो कैसे वहाँ पे अपना अपना अभियान अपने अपने ऑपरेशन को चला सकें ये सारे काम को सौंपे गए,
लेकिन कुछ दिनों के बाद जर्मन को पता चल गया, और बहुत सारे ब्रिटेन के इन जासूसों को पकड़ लिया गया,
अब खतरा ये था कि. Noor Inayat Khan का भी पोल खुल जाएगा तो, ब्रिटेन में उनके आकाओं ने कहा कि आप वापस आ जाओ जान को खतरा है,
लेकिन Noor Inayat Khan ने वापस आने से मना कर दिया, उन्होंने कहा जो काम मैं करने के लिए आई हूँ पूरा करूंगी और हमारे साथी एक एक कर कम होते जा रहे हैं, तो मेरी जिम्मेदारी बढ़ती जा रही है.
तो पूरा ब्रिटेन का जासूसी नेटवर्क एक तरह से बर्बाद हो चुका था, लेकिन Noor Inayat Khan अभी भी बची हुई थी,
हालांकि उनकी तस्वीरें जो है, वो जर्मन इंटेलिजेंस के पास थी, और उनके बारे में खबरें भी सारी थी, और सबसे बड़ी बात ये थी, कि जिस तरीके से मैसेज भेजा कर रही थी वायरलेस के जरिए,
क्योंकि वो एक वायरलेस ऑपरेटर थी, उसमें एक रिस्क बहुत ज्यादा था, कि अगर आप बीस मिनट तक लगातार बातचीत कर रहे हैं, तो आपके पकड़े जाने, आपके लोकेशन के पकड़े जाने का सबसे ज्यादा खतरा रहता है,
तो ये काम कभी पार्क में कभी लोकेशन बदल बदल कर करती थी, लेकिन कई बार ऐसा हुआ कि वो लगभग पकड़ी जाने वाली थी, लेकिन ऐन मौके पर मौके से निकल गई ,खबरें भेजती रही सब कुछ चलता रहा सब कुछ ठीक ठाक था,
लेकिन इसी दौरान में हुआ ये कि नूर को पकड़ लिया गया, पूरी जासूसी कर रही थी, सारी खबरें ब्रिटेन भेज दी थी,
उन खबरों से ब्रिटेन को काफी कुछ समझने में हमला करने में अपने लोगों को सही सलामत वहाँ तक पहुँचाने में काफी मदद मिल रही थी, और ये सब कुछ नूर के जरिए हो रहा था,
लेकिन जब पकड़े जाना था तब तो नूर नहीं पकड़ाई, बाद में उनके पकड़ाने की कहानी बड़ी अजीब थी,
एक और महिला थी, और ब्रिटेन की ही एक जासूस थी, उसे लगता था कि, नूर जिस तरीके से पॉपुलर हो रही है, नूर खूबसूरत है,
और उसके काम की तारीफ हो रही है, तो कहते हैं कि उसी ने जर्मन के जो जासूस थे उनको ये लीक कर दिया कि Noor Inayat Khan की असलियत क्या है,
फिर Noor Inayat Khan को पकड़ लिया गया, नूर को गिरफ्तार करने के बाद करीब एक महीने तक पूछताछ की गई,
और कहते हैं कि जबरदस्त टार्चर किया गया, लेकिन नूर ने अपनी जुबान नहीं खोली, और उसे ये पता था कि शायद उसे मार दिया जाएगा, इसलिए वो अपने बाकी साथियों और किसी का नाम नहीं बताना चाहती थी,
लेकिन गलती एक हुई, कि Noor Inayat Khan की एक डायरी थी, जिसमें उनके को जो जासूस थे उनके नंबर और नाम लिखे हुए थे, ताकि इमरजेंसी पढ़ने पे उनसे मदद ली जा सके,
जब नूर की गिरफ्तारी हुई तो, नूर को भी एहसास नहीं था कि गिरफ्तार हो सकती है, वो बाद में वो डायरी जहाँ पे वो रहती थी और वहाँ से जर्मन ऑफिशियल के हाथ लग गई,
और उस डायरी की वजह से तीन और जासूस जिनके नाम उसमें और नंबर थे वो सारा सबूत उनके हाथ लग गया, और फिर उन लोगों को भी गिरफ्तार कर लिया गया,
इन लोगों को फिर ले जाकर यातना शिविर में रखा गया, इन्हें काफी यातनाएँ दी गयी, लेकिन कहते हैं कि आखिर तक नूर ने मुँह नहीं खोला,
Noor Inayat Khan को हमेशा अफसोस रहा, कि ये तीन जासूस तीन मेरी वजह से पकड़े गए,
तो उनसे कहती थी कि, मैं तुम लोगों को यहाँ से निकालकर ले जाऊँगी,
और एक बार कोशिश भी की भागने के लिए और लगभग कामयाब हो गयी थी लेकिन आखिरी मोड़ पर पकड़ी गयी,
फिर इनको पकड़ने के बाद, Noor Inayat Khan ने दोबारा कहा कि मैं फिर भागूंगी, तब सज़ा के तौर पे अगले दस महीने तक Noor Inayat Khan के हाथ में हथकड़ियाँ पैरों में बेड़ियाँ डालकर रखा गया, ताकि भाग ना जाए,
इस दौरान में वक्त बीता और ब्रिटेन को Noor Inayat Khan की कोई खबर नहीं मिली तो, वहाँ पे भी ये लगा कि शायद नूर को मार दिया गया,
क्योंकि इस तरह से मारकर जर्मन बताते नहीं थे, कि उन्होंने जासूस को पकड़ा है, क्या किया है
लेकिन नूर के जिंदा होने की खबर भी बड़े अजीब तरीके से ब्रिटेन के जासूसों को लगी, नूर को जिस जगह रखा गया,
उसके बाद इन्होंने एक कप पे एक गुप्त संदेश लिखा, जो इनके जो एजेंट थे वही पढ़ सकते थे,
और उस कप में गुप्त संदेश के जरिए बताया था, कि मैं इस वक्त फलाने जगह पे हूँ, और मैं जिंदा हूँ, तो पहली बार फिर ब्रिटेन को ये पता चला कि वो अभी जिंदा है,
लेकिन फिर Noor को construction camp ले जाया गया, जो बड़ा ज़ुल्म के लिए बदनाम हुआ करता था,
फिर 13 सितंबर 1944 को Noor और उनके साथ तीन और जो agent थे इन तीनों को गोली मार दी गयी,
इसके बाद Noor को लेकर Britain में खबर पहुँची, और जो Noor Inayat Khan ने अपना काम जिस बहादुरी से किया था,
Britain ने उनको सिर्फ पनाह दिया था, इसलिए उन्होंने Britain के लिए जासूसी की, फिर Britain ने उन्हें सम्मान देने के लिए लंदन के square gardens में उस घर के करीब तांबे की एक प्रतिमा लगाई, Noor Inayat Khan जहाँ पे पहले वो रहा करती थी,
और ये पहला मौका था जब Britain में किसी, पहली Muslim पहली भारतीय और पहली एशियाई महिला की प्रतिमा उनके मरने के बाद लगाई गई, 1949 में फिर जॉर्ज क्रॉस अवार्ड से उन्हें नवाजा गया,
और अब ब्रिटेन की तरफ से खबर ये भी है, कि उन्हें मेमोरियल ब्लू प्लेक यानि नीली पट्टी स्मारक का सम्मान दिया जाना है,
और ये सम्मान पाने वाली वो भारतीय मूल की पहली महिला बनने जा रही है, तो एक ऐसी जासूस Tipu Sultan का नाम हम सभी जानते है, उनके वंश से आने वाली उनके वंशज से आने वाली जो दुश्मनों की गोलियों से मर गयी,
लेकिन आखिरी वक्त तक अपना मुँह नहीं खोला, और शायद अगर थोड़ा सा मौका मिलता, और वो डायरी हाथ ना लगती, तो वो तीन agent भी नहीं पकड़े जाते, कहते है कि Noor Inayat Khan को इसका हमेशा अफसोस रहा है,
सिर्फ तीस साल की उम्र थी जब Noor Inayat Khan को गोली मारी गयी थी|
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